6 अधिकारियों पर चलेगा कत्ल का केस
अहमदाबाद। इशरत जहां मुठभेड़ के सात साल बाद विशेष जांच टीम (एसआईटी) ने इसे फर्जी करार दिया है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर इस मामले की जांच के लिए गठित एसआईटी ने सोमवार को गुजरात उच्च न्यायालय में सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कॉलेज छात्रा इशरत और उसके तीन दोस्तों को पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया था।
एसआईटी की इस रिपोर्ट से जहां मृतकों के परिजनों ने राहत की सांस ली है, वहीं राज्य सरकार के लिए इसे एक बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है। रिपोर्ट आने के बाद गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जयंत पटेल और न्यायमूर्ति अभिलाषा कुमारी की खंडपीठ ने इस मामले में आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ नए सिरे से धारा 302 के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया, जिसमें हत्या के लिए मृत्युदंड का प्रावधान है।
पुलिस अधिकारी आर. आर. वर्मा के नेतृत्व में गठित एसआईटी के मुताबिक, पुलिस ने मुम्बई की कॉलेज छात्रा इशरत (19), जावेद शेख उर्फ प्राणेष पिल्लई, अमजद अली राणा तथा जीशान जौहर की हत्या 15 जून, 2004 की मुठभेड़ से पहले ही कर दी थी।
उन्हें अहमदाबाद के बाहरी इलाके में एक कार में मारा गया था। पुलिस ने बाद में उनके तार आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े होने की बात कही और दावा किया कि वे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने आए थे।
इस फर्जी मुठभेड़ में 21 पुलिसकर्मियों की संलिप्तता थी, जिसमें तत्कालीन संयुक्त आयुक्त पी. पी. पांडे, निलम्बित पुलिस उप महानिरीक्षक डी. जी. वंजारा, तत्कालीन सहायक आयुक्त जी. एल. सिंघल और सहायक आयुक्त एन. के. अमीन जैसे भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी भी शामिल थे।
न्यायालय ने सोमवार की सुनवाई में एसआईटी की रिपोर्ट का विस्तृत खुलासा नहीं किया, ताकि इससे मामले में आगे की जांच प्रभावित न हो। मामले में आगे की जांच को लेकर न्यायालय ने इस बारे में याचिकाकर्ताओं और राज्य सरकार से भी सुझाव मांगा है कि वे केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की जांच पर भरोसा करेंगे या राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की जांच पर?
न्यायालय ने कहा, “जांच एजेंसी को यह पता लगाने की जरूरत है कि मुठभेड़ में किसकी प्रमुख भूमिका थी.. इसके पीछे मकसद क्या था और चारों की मौत का वास्तविक समय क्या था?”
इस बीच, एसआईटी की रिपोर्ट आने के बाद इशरत और मुठभेड़ में जान गंवाने वाले अन्य युवाओं के परिजनों ने राहत की सांस ली है। इसे जीत करार देते हुए इशरत के परिजनों ने कहा कि इससे आतंकवादी होने का वह दाग धुल गया है, जो पुलिस ने उन पर लगाया था।
उसके चाचा रौफ लाला ने न्यायालय के बाहर संवाददाताओं से बातचीत में कहा, “वह जब तक जिंदा रही, निर्दोष थी। वह तब भी निर्दोष थी जब उसका शव हमारे पास लाया गया था। यह हमारी जीत है।”
उसकी मां शमीमा कौसर ने इसके लिए न्यायालय को धन्यवाद दिया और कहा कि न्याय तब तक अधूरा है जब तक कि दोषियों को सजा नहीं मिल जाती। रुं धे गले से कौसर ने कहा, “उन्हें फांसी दी जानी चाहिए। उन्होंने हमारी जिंदगी बर्बाद कर दी। उन्होंने हमारी निर्दोष बेटी को मार डाला।”
वहीं, मुठभेड़ में जान गंवाने वाले जावेद शेख के पिता गोपीनाथ पिल्लई ने केरल के अलापुझा में कहा, “मैं खुश हूं कि सच्चाई सामने आ गई। अब मुझे कोई आतंकवादी का पिता कहकर नहीं बुला सकता।” मुस्लिम महिला से शादी करने के लिए प्राणेष ने इस्लाम कबूल कर लिया था और अपना नाम बदलकर जावेद रख लिया था।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों ने भी एसआईटी की रिपोर्ट का स्वागत किया है। इशरत के परिवार को आतंकवादी के रूप में बदनाम करने के लिए उन्होंने पुलिस तथा मीडिया से इस मामले में सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने को कहा।
आम इन्सान कौ तो अगले दिन ही पता चल गया था कि यह फर्जी मूठभेड है
मगर अफसोस तौ ईस बात का है कि क़ानून कौ यह पता करने मैं इतने साल लग गये
और अब इस कैस को चलने और इसका फेसला तक गूनहगार अपनी मौत ही मर जायेंगे
7 SAAL BAAD PATA CHALA HAI K WO LOG NIRDOSH THE AGAR AISE CHALTA RAHA TO GUNEHGAR APNI LIFE PURI KAR LENGE AUR ADALAT KA FAISLA NAHI AYEGA INSAF NAHI MILEGA YAI HAI HAMARA SYSTEM HUME ISAI BADALNA HOGA TAKI KAL KOI FARZI ENCOUNTER NA HO AUR DOSHIO KO FANSI SAI BHI BURA DAND MILNA CHAHIYE
tabhi to kahte hai ki kanon andha hota ise sahi baat kabhi dikhai hi nahi deti